शोले: वीरू-जय की दोस्ती, गब्बर का खौफ और बदले की अमर गाथा

शोले (फ़िल्म)

  • आज से 49 साल पहले सन् 1975 में भारत के स्वतंत्रता दिवस पर फ़िल्म 'शोले' रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म की शुरुआत तो बहुत मामूली थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह फ़िल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी। देखते ही देखते शोले सुपरहिट और फिर ऐतिहासिक फ़िल्म हो गई। इसकी लोकप्रियता का अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि यह फ़िल्म मुंबई के 'मिनर्वा टाकीज़' में 286 सप्ताह तक चलती रही। 'शोले' ने भारत के सभी बड़े शहरों में 'रजत जयंती' मनायी। शोले ने अपने समय में 2,36,45,000,00 रुपये कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद 60 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर हैं।
  • 1975 में रिलीज़ हुई रमेश सिप्पी की फिल्म "शोले" भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई। यह फिल्म न केवल अपने समय में बल्कि आने वाले दशकों में भी एक सांस्कृतिक प्रतीक बन गई। इस फिल्म की लोकप्रियता आज भी उतनी ही है जितनी कि इसके रिलीज के समय थी। "शोले" न सिर्फ एक फिल्म थी, बल्कि यह भारतीय दर्शकों के दिलों में एक अमर कहानी के रूप में अंकित हो गई। इस लेख में हम इस महान फिल्म के निर्माण, उसकी कहानी, पात्रों और उसके अद्वितीय सांस्कृतिक प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

फिल्म के अविस्मरणीय संवाद

"शोले" अपने संवादों के लिए प्रसिद्ध है, और आज भी लोग इस फिल्म के संवादों को दोहराते हैं। सलीम-जावेद की जोड़ी ने ऐसे संवाद लिखे जो भारतीय सिनेमा में अमर हो गए। कुछ प्रमुख संवाद इस प्रकार हैं:
  1. कितने आदमी थे?                                                                (गब्बर सिंह) 
  2. जो डर गया समझो मर गया                                                    (गब्बर सिंह) 
  3. ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर                                                           (गब्बर सिंह) 
  4. अरे ओ सांभा!                                                                      (गब्बर सिंह) 
  5. बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना                                     (गब्बर सिंह) 
  6. हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं                                             (असरानी (जेलर)
  7. जब तक तेरे पैर चलेंगे, इस गाँव की सांस चलेगी                       (वीरू) 

संगीत और गाने

"शोले" का संगीत भी फिल्म की सफलता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। आर.डी. बर्मन द्वारा संगीतबद्ध और आनंद बख्शी द्वारा लिखे गए गीत दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय हुए। फिल्म के गाने जैसे:

"ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" – यह गाना जय-वीरू की दोस्ती का प्रतीक बन गया।
"होली के दिन दिल खिल जाते हैं" – यह रंगीन और मस्ती से भरा होली का गाना आज भी पसंद किया जाता है।
"जब तक है जान" – वीरू और बसंती के रोमांस को दर्शाता गाना।
"महबूबा महबूबा" – हेलेन पर फिल्माया गया यह गाना एक आइटम नंबर के रूप में फिल्म में एक नया रंग लाता है।

फिल्म की पृष्ठभूमि और निर्माण

  • "शोले" का निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था, और इसे उनके पिता जी.पी. सिप्पी ने निर्मित किया था। फिल्म की कहानी सलीम-जावेद की जोड़ी ने लिखी थी, जो अपने समय के सबसे सफल पटकथा लेखक थे। फिल्म की शूटिंग मुख्य रूप से कर्नाटक के रामनगर इलाके में की गई थी, जो फिल्म के पहाड़ी और ग्रामीण परिदृश्यों के लिए आदर्श साबित हुआ।
  • "शोले" का निर्माण उस समय के लिहाज से बेहद भव्य था। इसमें अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था, और इसका संगीत और एक्शन सीक्वेंस उस समय के लिए बहुत ही नए और आकर्षक थे। इसकी लागत लगभग 3 करोड़ रुपये थी, जो 1970 के दशक में बहुत बड़ी राशि मानी जाती थी।

कहानी

फ़िल्म की कहानी बहुत ही साधारण है, पर रमेश सिप्पी के निर्देशन ने इसमें अलग ही जान डाल दी थी। सेवानिवृत्त पुलिस अफ़सर ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार), डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) को गिरफ्तार करते हैं, पर वो जेल से भागने मे कामयाब हो जाता है। बदला लेने के लिए वह ठाकुर के परिवार का ख़ून कर देता है। ठाकुर गब्बर को जिंदा पकड़ने के लिए दो बहादुर लोफर जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र) की मदद लेता है। रामगढ़ में इनकी मुलाक़ात राधा (जया बच्चन) और बसंती (हेमा मालिनी) से होती है। और फिर शुरू होती है गब्बर को जिंदा पकड़ने की कवायद।

कहानी की संक्षिप्त झलक

  • "शोले" की कहानी एक काल्पनिक गाँव रामगढ़ की है, जो डाकू गब्बर सिंह के आतंक से त्रस्त है। गाँव के एक पूर्व पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) गब्बर से बदला लेने के लिए दो छोटे अपराधियों जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेंद्र) को गाँव में बुलाते हैं। जय और वीरू दोनों बचपन के दोस्त होते हैं और उनकी दोस्ती फिल्म का एक अहम पहलू है। ठाकुर उन्हें गब्बर सिंह को पकड़ने का काम सौंपता है।
  • गब्बर सिंह का किरदार अमजद खान ने निभाया, जो हिंदी सिनेमा के सबसे खतरनाक खलनायकों में से एक बन गया। फिल्म की कहानी बदले, दोस्ती, साहस और बलिदान के इर्द-गिर्द घूमती है। जय और वीरू की दोस्ती, ठाकुर का गब्बर से बदला लेने का जुनून, और गब्बर सिंह का क्रूर आतंक फिल्म के प्रमुख तत्व हैं।

प्रशंसनीय फ़िल्म

'तेरा क्या होगा कालिया' संवाद आज भी सबके दिलों दिमाग़ पर छाया है। शोले हिन्दी सिनेमा की सबसे प्रशंसनीय फ़िल्मों में से एक फ़िल्म है। एक गाँव रामगढ़ में निर्देशित, यह एक परंपरागत हिन्दी फ़िल्म है जो आज तक हिन्दी फ़िल्म प्रशंसकों के दिल मे घर किये बैठी है। हज़ारों बार देखने बाद भी लोग इसे देखकर नहीं थकते। जय और वीरू की दोस्ती, गब्बर सिंह का डर, सूरमा भोपाली और जेलर का हास्य, और ताँगे वाली बसंती और उसकी धन्नो- हर पात्र ने दिलोदिमाग़ पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। इस फ़िल्म के कई ऐसे दृश्य है जो आज भी फ़िल्मों मे आज़माए जाते हैं। जैसे-

  • वीरू का पानी की टंकी से आत्महत्या का ड्रामा।
  • जय का वीरू के लिए मौसी जी से बसंती का हाथ माँगना।
  • हेलेन का महबूबा महबूबा गाना।

मुख्य पात्र और उनका महत्व

  • जय (अमिताभ बच्चन): शांत, समझदार और रणनीतिकार जय फिल्म का एक गंभीर और मजबूत किरदार है। उसकी चुप्पी और गहरी सोच उसे वीरू से अलग बनाती है। हालांकि अंत में जय का बलिदान दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ता है।
  • वीरू (धर्मेंद्र): मस्तीखोर, मजाकिया और दिलफेंक वीरू जय का सबसे करीबी दोस्त है। उसकी हँसी-मजाक और रोमांटिक अंदाज, विशेषकर बसंती (हेमा मालिनी) के साथ, फिल्म में हल्कापन लाते हैं। वीरू का जिंदादिल किरदार दर्शकों को हंसाने के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी जोड़ता है।
  • गब्बर सिंह (अमजद खान): गब्बर सिंह का किरदार हिंदी सिनेमा का सबसे खतरनाक और प्रभावशाली खलनायक बन गया। उसके डायलॉग्स जैसे "कितने आदमी थे?" और "अरे ओ सांभा!" आज भी लोगों की जुबान पर हैं। अमजद खान ने इस किरदार को इतनी बेहतरीन तरीके से निभाया कि वह भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक स्थायी हिस्सा बन गया।
  • ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार): एक न्यायप्रिय और बहादुर पुलिस अधिकारी, जो गब्बर से अपना बदला लेने के लिए जय और वीरू को गाँव में बुलाता है। ठाकुर का गुस्सा और बदले की आग फिल्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • बसंती (हेमा मालिनी): बसंती एक मस्त-मौला, तेज़-तर्रार और बातूनी गाँव की लड़की है, जो घोड़ा-गाड़ी चलाती है। वीरू के साथ उसका रोमांटिक ट्रैक फिल्म में मज़ेदार और दिलचस्प मोड़ लाता है। बसंती के संवाद और उसकी मासूमियत ने उसे दर्शकों का प्रिय बना दिया
  • राधा (जया भादुरी): ठाकुर की विधवा बहू, जो जय से चुपचाप प्रेम करती है। उसका किरदार कम बोलता है, लेकिन उसकी आँखों के भाव और उसकी चुप्पी ने फिल्म में गहराई ला दी।

गीत संगीत

  1. होली के दिन जब दिल मिल जाते हैं                         (किशोर कुमार, लता मंगेशकर
  2. महबूबा ओ महबूबा                                              (राहुल देव बर्मन
  3. ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे                                         (किशोर कुमार, मन्ना डे
  4. ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे (दु:खद)                             (किशोर कुमार
  5. कोई हसीना जब रूठ जाती है                                 (किशोर कुमार, हेमा मालिनी
  6. जब तक है जाँ जाने जहाँ                                       (लता मंगेशकर) 

विशेषताएँ

[शोले की शूटिंग के दौरान कैमरे के पीछे चट्टान पर पहली बार जेलर की वर्दी पहने हुए असरानी के अभ्यास पर हँसते हुए अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार व अमजद ख़ान]
  • जी. पी. सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित 'शोले' कई मायनों में ख़ास रही। जापान के विश्वविख्यात निर्देशक अकिरा कुरोसावा की फ़िल्म 'सेवन सामुराई' और जॉन स्टजेंस के 'द मॅग्निफिशियंट सेवन' फ़िल्मों पर आधारित "शोले" की कथा, पटकथा और संवाद सलीम-जावेद ने लिखे। फ़िल्म के अनेक दृश्य 'वंस अपॉन ए टाइम इन द वेस्ट' (Once Upon A Time In The West), 'द गुड द बैड एंड द अगली' (The Good, the Bad and the Ugly), 'ए फ़िस्टफुल ऑफ़ डॉलर्स' (A Fistful of Dollars), 'फ़ॉर ए फ़्यू डॉलर्स मोर' (For a Few Dollars More) आदि वेस्टर्न फ़िल्मों से प्रेरित हैं।
  • मज़बूत कथा, डायलॉग, जीते-जागते साहसी दृश्य, चंबल के डाकुओं का चित्रण, गब्बर बने अमजद द्वारा संवादों की दमदार अदायगी, ठाकुर बने संजीव कुमार का जबर्दस्त अभिनय और उसे मिला अमिताभ और धर्मेन्द्र का अचूक साथ। जया बच्चन और हेमा मालिनी के परस्पर विरोधी किरदारों का लाजवाब अभिनय कहानी के माफिक उम्दा संगीत और आर डी बर्मन के गीतों में और कहीं नजाकत भरे दृश्यों में माउथऑर्गन का लाजवाब इस्तेमाल और हेलन पर फ़िल्माया गया "महबूबा महबूबा" गाना ऐसी तमाम ख़ासियतें रहीं।
  • मुख्य किरदारों के साथ "साँभा", "कालिया" इन डाकुओं के किरदारों में मॅकमोहन और विजू खोटे की भी अलग पहचान क़ायम हुई। वहीं छोटे अहमद (सचिन) की डाकुओं द्वारा हत्या के करुण दृश्य में इमाम (ए. के. हंगल) का भावपूर्ण अभिनय और पार्श्व में नमाज़ की अजान के सुर गमगीन माहौल की पेशकश का चरम बिंदु रहे।
  • बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर किया।
  • फ़िल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले 'डैनी डेग्जोंप्पा' को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार संजीव कुमार तो जेलर को धर्मेंद्र निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नज़र पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई।
  • "कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने साँभा का किरदार ऐन वक्त पर शामिल किया गया। रेल नकबजनी दृश्यों की शूटिंग पूरे सात हफ्ते चली। और "कितने आदमी थे?" डायलॉग 40 रिटेक के बाद शूट हुआ।
  • कई तरह से ख़ासियतों का रिकॉर्ड क़ायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।
  • इस फ़िल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात पूरी फ़िल्म में मैक मोहन द्वारा एक ही डायलॉग (संवाद) बोला गया था और वो भी सुपर हिट हुआ !
  • फ़िल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फ़िल्म इतनी जबरदस्त हिट रही है कि 2005 में इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फ़िल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फ़िल्म पुरस्कार की सीमा में आती ही नहीं है।
  • शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इस पर फ़िल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा कि इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते हैं और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते हैं, पर लेखक जोड़ी ने साफ़ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फ़िल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।
  • 1999 में बी.बी.सी. इंडिया ने इस फ़िल्म को शताब्दी की फ़िल्म का नाम दिया और दीवार की तरह इसे इंडिया टाइम्ज़ मूवियों में बॉलीवुड की शीर्ष 25 फ़िल्मों में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फ़िल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फ़िल्मफेयर पुरस्कार था।
  • इस फ़िल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज़ में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फ़िल्म इतिहास की पहली ऐसी फ़िल्म थी, जिसके संवादों को कैसेट के जरिए रिलीज करके म्यूजिक कम्पनी एचएमवी ने लाखों रुपये की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फ़िल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन ने अपनी स्थिति को मज़बूत कर लिया था।
  • इस फ़िल्म का निर्माण तीन करोड़ रुपये के बजट में हुआ था। वर्ष 1999 में बीबीसी इंडिया ने इसे 'सहस्राब्दी की फ़िल्म' घोषित किया था।
  • इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पांच साल तक प्रदर्शन के लिए इसे 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉडर्स' में दर्ज किया गया था।

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